Home > Aarthik-mudde

Blog / 12 Dec 2019

(आर्थिक मुद्दे) आरबीआई की मौद्रिक नीति (RBI's Monetary Policy)

image


(आर्थिक मुद्दे) आरबीआई की मौद्रिक नीति (RBI's Monetary Policy)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): सुशील चंद्र त्रिपाठी (पूर्व वित्त सचिव, उत्तर प्रदेश), राजीव रंजन झा (संपादक निवेश मंथन)

चर्चा में क्यों?

RBI की मौद्रिक नीति समिति यानी MPC ने बीते 5 दिसंबर को चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पांचवी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा का ऐलान किया। इस समीक्षा में आरबीआई ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और इसे 5.15 फीसदी पर ही बनाए रखने का फैसला लिया है। रिजर्व बैंक की ऋणनीति की समीक्षा में रेपो रेट नहीं घटाने पर सहमति बनी है। बढ़ती आर्थिक सुस्ती और घटती विकास दर के बीच आई इस मौद्रिक नीति के अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर के कयास लगाए जा रहे हैं।

इस बार की मौद्रिक नीति के प्रमुख बिंदु

  • रेपो दर में कोई बदलाव नहीं 5.15 फ़ीसदी पर बना रहेगा।
  • मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की वृद्धि दर का अनुमान 6.1 फीसद से घटाकर 5 फ़ीसदी कर दिया गया।
  • तमाम संकेतक ऐसा इंगित कर रहे हैं कि मांग अभी भी कमजोर स्थिति में बनी हुई है।
  • आरबीआई उदार रुख बनाए रखेगा ताकि आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके।
  • आरबीआई ने यह संकेत भी दिया कि आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में कुछ अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं।
  • मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ाकर 5.1-4.7 फ़ीसदी किया गया।
  • 3 दिसंबर तक की उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार 451.7 अरब डॉलर पर रहा। पिछले वित्त वर्ष की समाप्ति से यह 38.8 अरब डॉलर ज्यादा रहा।
  • छठी मौद्रिक नीति समीक्षा के लिए अगली बैठक चार से छह फरवरी 2020 के बीच होगी।

क्या है मौद्रिक नीति?

भारतीय रिजर्व बैंक हर दूसरे महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है।

  • यह काम RBI की मौद्रिक नीति समिति करती है।
  • इस समीक्षा में अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए नीतिगत ब्याज दरें घटाने या बढ़ाने का फैसला लिया जाता है।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो मौद्रिक नीति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
  • वहीँ राजकोषीय नीति के ज़रिए सरकार समग्र मांग और अर्थव्यवस्था पर सरकारी खर्च और करों के असर को नियंत्रित किया जाता है।

क्या मक़सद होता है मौद्रिक नीति समीक्षा का?

मौद्रिक नीति से कई मकसद साधे जाते हैं।

  • इनमें महंगाई पर अंकुश, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना शामिल है।
  • इसके अलावा रोजगार के अवसर तैयार करना भी इसके लक्ष्यों में से एक है।
  • अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति के नियंत्रण के लिए बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो या ओपन मार्केट आपरेशन का सहारा लिया जाता है।
  • रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के जरिए कर्ज की लागत को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।

आसान, सख़्त और तटस्थ मौद्रिक नीति

सरल या आसान मौद्रिक नीति: नरम रुख रखने पर आरबीआई मौद्रिक नीति में प्रमुख ब्याज दरों को घटाता है। इससे अर्थव्यवस्था में पैसों की आपूर्ति बढ़ने का रास्ता खुल जाता है। बाजार में नकदी बढ़ने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। इसे सरल या आसान मौद्रिक नीति कहा जाता है।

सख़्त मौद्रिक नीति: जब केंद्रीय बैंक अपना रुख कठोर करता है तो ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है। इससे अर्थव्यवस्था में नकदी घट जाती है। इसका उत्पादन और खपत दोनों पर विपरीत असर होता है। इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटती है। इसे सख़्त मौद्रिक नीति कहा जाता है।

तटस्थ मौद्रिक नीति: जब मौद्रिक नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाता तो इसे तटस्थ नीति कहा जाता है।

मौद्रिक नीति समिति

मौद्रिक नीति समिति एक छह सदस्यीय समिति होती है जिसका गठन केंद्रीय सरकार द्वारा किया जाता है। इस समिति का गठन उर्जित पटेल कमिटी की सिफारिश के आधार किया गया था।

  • समिति की अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर करता है।
  • इसमें तीन सदस्य आरबीआई से होते हैं और तीन अन्य स्वतंत्र सदस्य भारत सरकार द्वारा चुने जाते हैं।
  • आरबीआई के तीन अधिकारीयों में एक गवर्नर, एक डिप्टी गवर्नर तथा एक अन्य अधिकारी शामिल होता है।
  • मौद्रिक नीति निर्धारण के लिए यह समिति साल में चार बार बैठक करती है और सर्वसम्मति से निर्णय लेती है।

मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रयुक्त प्रमुख शब्दावलियाँ

बैंक रेट: केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को दिए जाने वाले लोन पर जो ब्याज दर लगाया जाता है उसे बैंक दर कहते हैं। अमूमन ये लॉन्ग टर्म लोन होता है।

रेपो रेट: रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं। अमूमन ये शार्ट टर्म लोन होता है।

रिवर्स रेपो रेट: यह रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है।

कैश रिजर्व रेश्यो: देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो यानी सीआरआर या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

तरलता समायोजन सुविधा: तरलता समायोजन सुविधा यानी लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी के माध्यम से आरबीआई रेपो दर और रिवर्स रेपो दर आदि का निर्धारण करती है।

क्रय प्रबंधक का सूचकांक (पीएमआई): ये विनिर्माण क्षेत्र के आर्थिक हालत का एक संकेतक है। पीएमआई पांच प्रमुख संकेतकों पर निर्भर करता है: नए आदेश, इन्वेंट्री स्तर, उत्पादन, आपूर्तिकर्ता वितरण और रोजगार का माहौल।

निष्कर्ष

आरबीआइ गवर्नर दास की अध्यक्षता में अभी तक जितनी भी एमपीसी की बैठक हुई है उसमें रेपो रेट को घटाया गया है। दास की अध्यक्षता में ऐसा पहली बार हुआ है कि रेपो रेट को यथावत बनाए रखा गया है। हालांकि लोग रिपोर्ट में 0.25 फ़ीसदी की कटौती की उम्मीद लगा रहे थे। वहीं दूसरी तरफ बैंकों की तरफ से कर्ज वितरण के जो आंकड़े बाहर आये हैं उससे लगता नहीं है कि रेपो रेट की कटौती का कोई खास फायदा हुआ है।